चित्रगुप्त जी यदि धर्मराज नहीं थे बल्कि यमराज को ही धर्मराज भी कहा जाता है और श्री चित्रगुप्त जी यमराज के मुन्शी थे तो प्रश्न उठता है कि क्या महारानी कुंती ने यमराज (धर्मराज) का आह्वान किया था उन्हें पुत्र प्रदान करने के लिए?? तो क्या युधिष्ठिर यमराज (धर्मराज) के पुत्र थे??? इस सवाल मे वो षड्यंत्र छिपा है जिसे उस समय के ब्राह्मणों ने श्री चित्रगुप्त को नीचा दिखाने के लिए कहा था. ये लोग एक तरफ तो कहते रहे कि युधिष्ठिर धर्मराज के पुत्र थे जिन्हें महारानी कुंती ने देवताओं मे श्रेष्ठ मानकर पुत्र प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया था और दूसरी तरफ ये उस समय खामोश हो जाते है जब सवाल उठाया जाता है कि कुंती ने अखिर यमराज (धर्मराज) को क्यों श्रेष्ठ माना और क्या युधिष्ठिर यमराज के पुत्र थे??
दरअसल भगवान श्री चित्रगुप्त ही धर्मराज हैं.
यमराज तो यम लोक के executive head हैं जबकि श्री चित्रगुप्त सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं, धर्मराज हैं जिनके फैसलों का अनुपालन यमराज – प्रशासन करता है.
सच तो यह है कि चारों वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) के साथ ही उपनिषद , रामायण व महाभारत काल तक किसी भी ग्रंथ मे चित्रगुप्त जी का कहीं उल्लेख नहीं है. उस समय तक धर्मराज एवं यमराज का ही उल्लेख है. बाद में पुराणों की रचना जब की गयी तो ब्राह्मणों ने साजिशन इनमे धर्मराज की जगह चित्रगुप्त जी के नाम का उल्लेख कर दिया. पद्म पुराण मे श्री चित्रगुप्त को कहीं कहीं धर्मराज जरूर कहा गया क्योंकि वेदों मे स्वर्ग के न्यायाधीश को धर्मराज ही कहा गया था. पुराण मे कहीं कहीं चौदह यमों का मंत्र व वर्णन आता है . मंत्र धर्मराज शब्द से प्रारंभ होकर चित्रगुप्त शब्द पर समाप्त होता है. स्कंद पुराण में एक वर्णन में भगवान विष्णु को समर्पित होने वाली भक्तों की भेंट का एक भाग यमदेव व चित्रगुप्त देव को स्वत: जाने का निर्धारण स्वयं विष्णु जी करते हैं. अतः चित्रगुप्त किसी देवता के सहायक कैसे हो सकते हैं. क्योंकि यदि वे देवता नहीं होते कोई रिकार्ड कीपर या मुन्शी होते तो विष्णु यमराज के साथ श्री चित्रगुप्त जी की चर्चा यहां क्यों करते. वे तो स्वयं धर्म देव अर्थात धर्मराज हैं और दशमी ही उनका दिवस है.
स्पष्ट है कि गंगा सप्तमी का चित्रगुप्त जी से कोई संबंध नहीं है. सारे देश में धर्मराज दशमी पर घरों में दीप प्रज्ज्वलित हुये थे जो सोशल मीडिया में बड़े स्तर पर दिखाये भी गये थे. उज्जैन और अयोध्या मे स्थित भारत के सबसे पुराने दोनों चित्रगुप्त मंदिर आज भी धर्मराज मंदिर व धर्म हरि मंदिर के नाम से सैंकड़ों वर्षों से जाने जाते हैं. दोनों का वर्णन स्कंदपुराण में हैं. सभी पुराणों में भी चित्रगुप्त जी को न्याय व धर्म के अधिकारी के रूप में दर्शाया गया है.
नादान लोग बतायेंगे कि युधिष्ठिर व हरिश्चन्द्र किस धर्मराज के अंश से उत्पन्न हुये थे. क्या यमराज के? जैसा कि कुछ धर्मराज व यमराज के एक होने पर जोर देते रहते हैं. दरअसल दोनों श्री चित्रगुप्त अर्थात धर्मराज के ही अंश हैं.
ब्रह्मा ने चित्रगुप्त जी को कर्मानुसार पाप पुण्य का निर्णय करने व तदानुसार जीव को मृत्योपरांत उचित लोक में भेजने का फैसला करने का दायित्व सौंपा था और देवताओं मे श्रेष्ठ – मुख्य न्यायाधीश होने की वज़ह से ही श्रेष्ठ पुत्र प्राप्त करने के लिए कुंती ने भगवान श्री चित्रगुप्त अर्थात धर्मराज का आव्हान किया था.
केवल अहंकार व द्वेष वश चित्रगुप्त जी के देवत्व को नकारना व उन्हें सहायक या मुनीम बना देना पौराणिक और वैदिक इतिहास के साथ जानबूझकर की गई छेड़ – छाड़ है. श्री चित्रगुप्त ही युधिष्ठिर के पिता और धर्मराज पद पर आसीन देव हैं जो न्याय व धर्म का नियंत्रण करते हैं. इसीलिए मंत्र है
“” “ओम यमाय धर्मराजाय श्री चित्रगुप्ताय वै नम:. मतलब यम यानि नियम, धर्म यानि संहिता के अधिष्ठाता श्री चित्रगुप्त को प्रणाम.” “”
उज्जैन के प्राचीनतम धर्मराज चित्रगुप्त मंदिर में जाकर देखना चाहिए. वहाँ आज भी चित्रगुप्त जी की प्राचीन प्रतिमा धर्मराज के नाम से जानी जाती है. इसीलिये धर्मराज दशमी को प्राकट्य दिवस प्रचारित करते रहना चाहिए ताकि भ्रम दूर हो. है.
– राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् जयपुर एवं राजस्थान कायस्थ महासभा एवं साथी संस्थायें
07
May
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