भगवान श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर की ऐतिहासिक तथ्य

परम्ब्रह्मा परमेश्वर ही अनादि-अनंत श्री चित्रगुप्त हैं, वे ब्रह्मा की काया से उत्पन्न यानि आधुनिक वैज्ञानिक स्वरुप में ब्रह्मा की प्रतिकृति या क्लोन हैं, वे ही र्निगुण, निराकार, निरंजन, निर्विकार होकर भी प्रकृति से परे स्वरुप में अभिव्यक्त होकर भी सृष्टि के संयम के लिए साकार रुप में प्रत्यक्ष हैं ।

ऋगवेद के ऋचा (4/7/6) के अनुसार भगवान श्री चित्रगुप्त समस्त प्रकाशकों के परम प्रकाशक, सच्चिदानन्दधन स्वरुप परमेश्वर स्वंय संवेद्य परमात्मा हैं।

पद्म पुराण में उत्तराखण्ड के श्लोक (22/5(1-2) के अनुसार धर्मराज, यमराज और चित्रगुप्त आदि शक्ति परमेश्वर परम पुरुष विभिन्न कार्यो के लिए अलग-अलग से निर्धारित हैं । सृष्टि के समस्त प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखनेवाले एवं प्राणियों द्वारा पृथ्वी पर किए गए समस्त कर्मो का न्याय-संगत विचार कर उनके भविष्य का निर्धारण करने वाले श्री चित्रगुप्त न्यायाधीश स्वरुप दण्डकरता और पुरस्कार प्रदाता हैं। भगवान श्री चित्रगुप्त सारी श्रृष्टि के पूज्य और उपास्य हैं। वैदिक काल में प्रत्येक प्रज्ञा संघ के राष्ट्र-पुरुषों और राजाओं द्वारा उनकी पूजा और उपासना की जाती थी ।

कायस्थ का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि काया में स्थित अर्थात् “ब्रह्मस्वरुप आत्मा”। आत्मा को ही परमात्मा भी कहा गया है। इस विश्लेषण मात्र से यह सिद्ध होता है कि कायस्थ कोई जाति नहीं, बल्कि यह अध्यात्म से ओत-प्रोत एक विशिष्ट संस्कृति है और भगवान श्री चित्रगुप्त के वंशज वास्तव में विशेष ज्ञान प्रतिभा और गुणो से युक्त परमेश्वर के विशेष प्रतिनिधि हैं, जिनके उपर सृष्टि को संरक्षित और परिवर्द्धित करने की जिम्मेदारी रही है।

महामात्य मद्राराक्षस का परिचय

पूर्व की शताब्दियों में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर नन्दवंश का शासन था जिसके महामात्य मुद्राराक्षस थे। मुद्राराक्षस कायस्थ जाति के थे एवं उनकी ख्याति भारतीय इतिहास में एक अत्यन्त कुशल एवं दक्ष प्रशासक, महान न्यायविद्, प्रकाण्ड विद्वान एवं निष्ठावान कर्मकाण्डी के रुप में विश्वविख्यात है । महामात्य मुद्राराक्षस ने नन्दवंश की तीन पुश्तों के राजाओं के साथ प्रधान मंत्री का कार्य किया और लगभग 50 वर्षों तक नन्दवंश के महामात्य के रुप में मगध साम्राज्य पर शासन किया ।

जब चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 ई०पू० में नंदों को पराजित कर मौर्यवंश की स्थापना की, तब अपने गुरु कूटनीतिज्ञ कौटिल्य (पंडित चाणक्य) की आज्ञा से चन्द्रगुप्त मौर्य ने भी पराजित नन्दवंश के महामात्य मुद्राराक्षस को ही सम्मान पूर्वक मौर्यवंश का महामात्य नियुक्त किया और मुद्राराक्षस ने जीवन-प्र्यन्त मौर्यवंश का शासन चलाया। मुद्राराक्षस ने मौर्यवंश के शासन क्षेत्र को वालीलोन (ईराक) से बोरोबुदूर (इंडोनेशिया) तक फैलाकर सुदृढ साम्राज्य कायम किया। यह विश्व के इतिहास में पहला उदाहरण है कि सक्षम प्रशासन के गुणों के कायल होकर किसी विजयी राजा ने किसी पराजित राजा के महामात्य को अपने साम्राज्य की बागडोर सौंप दी हो।

महामात्य मुद्राराक्षस एवं श्री चित्रगुप्त आदि मंन्दिर

बताते है कि लगभग 2500 वर्ष से भी ज्यादा पूर्व इसी ऐतिहासिक पवित्र स्थान पर यमद्वितीया के दिन भगवान श्री चित्रगुप्त की सामुहिक पूजा की प्रथा मुद्राराक्षस ने प्रारम्भ की थी, तथा मौर्यवंश के महामात्य मुद्राराक्षस ने इसी पवित्र स्थान पर भगवान श्री चित्रगुप्त का एक भव्य मंदिर भी स्थापित किया था । किन्तु यह तो अत्यन्त ही स्वाभिक प्रतीत होता है कि लम्बे कालखंडों में कभी न कभी गंगा की प्रचण्ड बाढ़ में मंदिर परिसर घ्वस्त हो गया होगा। लेकिन यमद्वितीया को श्री चित्रगुप्त जी की सामुहिक पूजा की परम्परा कमोबेश निरंतर चलती ही रही और आज भी विद्यमान है।

राजा टोडरमल का परिचय

गया के अम्वष्ट कायस्थों में 108 घरानों (खासघरों) में से एक खासघर “मल” है। अभी भी इस खास घर के लोग अपने नाम के आगे “मलदहियार” की उपाधि लिखते हैं। जिनके पूर्वज मुंशी हुंकारा मल गया में फल्गु नदी के सूख जाने के कारण भयंकर दुर्भिक्ष का शिकार होकर अपने पुरे कुनबे के साथ पेशावर चले गए थे। बाद में अपने बुढ़ापे के दिनों में उन्होंने वापस लौटकर बिहार के चम्पारण जिले के विभूतिपुर नामक स्थान पर अपनी रियासत बसायी । उन्हीं की सातवीं पीढ़ी में टोडरमल का जन्म हुआ।

राजा टोडरमल संभवतः मुद्राराक्षस के बाद पूरे विश्व के इतिहास में दूसरे ऐसे कायस्थ महापुरुष हुए जिन्होंने दो परस्पर विरोधी वंश के शासकों के साथ अत्यन्त प्रभावी ढ़ंग से सफलतापूर्वक कार्य किया। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि मुग़ल साम्राज्य का दूसरा बादशाह हुमायुँ जब अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए वाराणसी से पूरब की ओर बढ़ा तब अफगानी राजा शेरशाह सुरी ने उसे चुनौती दी और बक्सर के पास चौसा की लड़ाई में 26 जुन 1539 को हुमायुँ को परास्त किया। हुमायुँ मुंह की खाकर उल्टे पांव वापस दिल्ली लौट गया।

उस समय राजा टोडरमल ही शेरशाह सूरी के वजीरे खजाना थे और चौसा युद्ध के सेनापति एवं रणनीतिकार थे । शेरशाह सुरी के शासनकाल में मज़बूत अर्थव्यवस्था का श्रेय मुख्य रुप से राजा टोडरमल को ही जाता है, कलकत्ते से पेशावर तक का ऐतिहासिक ग्रैंड टंक रोड सहित अन्य कई सड़कें, सराय, विश्व की प्रथम संगठित डाक व्यवस्था, प्रथम संगठित सुरक्षा व्यवस्था, व्यवहारिक एवं लोकप्रिय लगान प्रथा तथा जमीन की पैमाइश के लिए कड़ी और जरीब के अविष्कार का श्रेय भी राजा टोडरमल को ही जाता है। राजा टोडरमल का बनवाया हुआ रोहतास का किला उनके स्थापत्य कला की पैनी परख एवं युद्धव्युह रचना की निपुणता के साक्षी के रुप में आज भी विद्यमान है ।

बाद में हुमायुँ के पुत्र अकबर ने शेरशाह को पराजित कर मुगल साम्राज्य का विस्तार किया। सम्राट अकबर ने दीवाने खास में अपने प्रमुख सिपाहसालारों के साथ मंत्रणा में महान योद्धा अपने वालिद को चौसा की लड़ाई में पराजित होने का कारण पूछा। उन्हें बताया गया कि शेरशाह सूरी के अति बुद्धिमान, पराक्रमी रणनीतिकार, प्रशासक एवं कुशल वित्तीय प्रबन्धक वजीर सह सेनापति राजा टोडरमल ने चौसा के मैदान में हुमायुँ की सेना को आने दिया फिर चारों तरफ से घेरकर खाने-पीने की चीजे आने पर रोक लगा दी जिससे सैनिक भूखे मरने लगे अंततः हुमायुँ को युद्ध से पलायन करके भागना पड़ा ।

राजा टोडरमल एवं श्री चित्रगुप्त आदि मंन्दिर

बताते है कि सन् 1573 में जल मार्ग भ्रमण के क्रम में यमद्वितीया के दिन गंगा के दक्षिणी तट के चित्रगुप्तघाट पर स्थित श्री चित्रगुप्त मंदिर में पाटलीपुत्र के कायस्थों के साथ मिलकर राजा टोडरमल ने सामुहिक चित्रगुप्त पुजा की। मुद्राराक्षस द्वारा स्थापित इस ऐतिहासिक मंदिर की दुर्दशा देखकर राजा टोडरमल मर्माहत हुए। उसी समय उन्होंने श्री चित्रगुप्त के भव्य मंदिर पुर्ननिर्माण का संकल्प लिया । वाराणसी लौटकर उन्होंने काले कसौटी के एक बड़े शीलाखंड को और पत्थर तराशने वाले निपुण कारीगर को पाटलीपुत्र भिजवाया और अपने नायब कुंवर किशोर बहादुर को व्यक्तिगत रुप से इस मंदिर के निर्माण की देख-रेख का भार सौंपा ।

सन् 1574 ईसवी की यमद्वितीया के दिन नवनिर्मित भव्य मंदिर, पाटलीपुत्र में आकर राजा टोडरमल ने भगवान श्री चित्रगुप्त की काली कसौटी पत्थर की मुर्ति की प्राण-प्रतिश्ठा की तथा उसके उपरान्त कायस्थों के साथ मिलकर राजा टोडरमल ने सामुहिक चित्रगुप्त पुजा की। तब से आजतक सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का सक्रिय केन्द्र बना रहा श्री चित्रगुप्त मंदिर ने उत्थान-पतन के कई कालखंड देखे। सन् 1950 के दशक में एक काली रात को भगवान श्री चित्रगुप्त की दुर्लभ प्रतिमा चोरी चली गई या युं कहिए कि भगवान श्री चित्रगुप्त अपने वंशजों के व्यवहार से रुठकर अन्र्तध्यान हो गए। उसके बाद भगवान श्री चित्रगुप्त की संगमरमर की प्रतिमा का प्राण-प्रतिष्ठा कराकर निरंतर पुजा होती रही।

उल्लेखनीय है कि ईसवी सन् 1766 में राजा सिताब राय के पौत्र महाराज भुपनारायण सिंह ने नक्काषीदार पत्थरों से मंदिर को भव्यता प्रदान की थी।

श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा एवं श्री चित्रगुप्त आदि मंन्दिर

सन् 2006 में कायस्थ गतिविधियों की केन्द्रस्थली सहाय सदन, पटना के विशाल प्रागंण में आयोजित श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर प्रबन्धक समिति की वार्षिक आम-सभा में देश की अग्रणी सुरक्षा एजेंसी एस०आई०एस० के संस्थापक चेयरमैन एवं प्रमुख समाजसेवी (वर्तमान में राज्य सभा सांसद) श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुन लिया गया जो आजतक निरंतर अध्यक्ष चुने जा रहे हैं।

श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा, अध्यक्ष जी के नेतुत्व अबतक की प्राप्त उपलब्धि

  • अध्यक्ष पद ग्रहण करने के बाद मंदिर प्रागंण में बोरिंग कराने के पश्चात् मोटर एवं पानी की टंकी लगाकर जल संकट को दूर किया गया।
  • श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा, अध्यक्ष जी के द्वारा सुशील कुमार सिन्हा, सचिव को मंदिर प्रांगण में स्थायी विद्युत व्यवस्था कायम करने जबाबदेही तय की गई। फलस्वरुप कुछ ही दिनों में सभी बाधायों को दूर करते हुए मंदिर प्रागंण में स्थायी विद्युत व्यवस्था कायम कर दी गई।
  • संयोगवश, अध्यक्ष पद ग्रहण करने वाले वर्ष के अन्त में ही चमत्कारिक ढंग से श्री चित्रगुप्त घाट के उस पार यानि गंगा के उतरी छोर पर स्थित चित्रसेन गाँव, सारण जिला में ईट के भट्ठे के लिए मिट्टी की खुदाई के क्रम में लगभग 450 वर्ष पुरानी श्री चित्रगुप्त भगवान की र्दुलभ प्रतिमा बरामद हो गई या यूं कहा जा सकता है कि अपने वंशजों की पूजा-अर्चना से प्रसन्न होकर भगवान पुनः पृथ्वी पर अवतरित हो गए। लेकिन विधि व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए सारण जिला प्रशासन द्वारा त्वरित कारवाई के तहत उसे पटना समाहरणालय को समर्पित कर दिया गया। नियमानुसार, समाहरणालय को समर्पित, भूमि के अन्दर से प्राप्त पुरातत्व की सामग्री या मूर्ति को किसी भी संस्था या दावेदार को नहीं लौटाया जा सकता है। श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा, अध्यक्ष श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर प्रबन्धक समिति के कृत्य संकल्प, कुशल नेतृत्व एवं अथक प्रयास से बिहार सरकार ने Antiquity and Art Treasures Act 1972 एवं Antiquity and Art Treasures Rules 1973 की धाराओं 16 (These are rules mentioned here, will have to find out) में वांछित नियमों के अनुरुप लगभग 450 वर्ष पुरानी श्री चित्रगुप्त की र्दुलभ प्रतिमा जिसका अनुमानित मूल्य 300 करोड़ रु० था, को श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा के निजी जमानत पर दिनांक 9 नबम्बर, 2009 को श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर प्रबन्धक समिति को हस्तगत करा दिया। जो वर्तमान में मंदिर में पुनः विधिवत स्थापित हुई और उसकी पूजा निरंतर की जा रही है।
  • श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा, अध्यक्ष जी एवं श्री रविनन्दन सहाय, कार्यकारी अध्यक्ष जी के अथक प्रयास से कायस्थ एकता नवजागरण चलाकर पटना शहर में सभी अस्थायी श्री चित्रगुप्त मुर्ति पुजनोत्सव समितियों द्वारा एक भव्य शोभा यात्रा के रुप में आदि मंदिर आने एवं सामूहिक आरती के उपरान्त श्री चित्रगुप्त घाट पर ही विर्सजन की प्रथा को प्रारम्भ किया गया, जो आज तक हर्षोल्लास के साथ निरंतर कायम है ।
  • इसी परिसर के अन्दर एक शिव मंदिर भी अवस्थित है। श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा ने तत्कालिक उपाध्यक्ष श्री कुमार अनुपम,  श्री संदीप चन्द्रा, प्रधान सचिव श्री सुदामा प्रसाद सिन्हा एवं सचिव सुशील कुमार सिन्हा को भेजकर संयुक्त विलक्षण शिवलिंग के साथ शिव दरबार के नन्दी, श्री गणेश, श्री कार्तिकेय, माँ पार्वती और फणधारी नाग देवता की मूर्ति नर्मदा नदी के तटपर अवस्थित ओंकारेश्वर मंदिर, मध्यप्रदेश से मँगवाया और उन्हें मंदिर के पुराने खंडित शिवलिंग के स्थान पर विलक्षण शिवलिंग के साथ शिव दरबार के नन्दी, श्री गणेश, श्री कार्तिकेय, माँ पार्वती और फणधारी नाग देवता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा की उपस्थिति में पूरे कर्मकांड के साथ 7 मई 2013 में प्रारम्भ कर 8 मई 2013 की दोपहर 12 बजे सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालुओं के जयघोष के साथ स्थापना हो गई और इसे चित्रगुप्तेश्वर महादेव का नाम दिया गया।
  • प्रथम तल पर 15वेदी, द्वितीय तल पर 11वेदी तथा तृतीय तल पर 10 वेदी यानि कुल 36 वेदी (छोट-छोटे मंदिर) एवं गुम्बज युक्त चार तल के मुख्य भवन का निर्माण तथा उसपर प्लास्टर एवं प्रारम्भिक रंगाई का काम श्री सुदामा प्रसाद सिन्हा, प्रधान सचिव के अथक प्रयास से श्री रविनन्दन सहाय, कार्यकारी अध्यक्ष के मार्गदर्शन में संपन्न करा लिया गया है ।
  • सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर मंदिर प्रांगण में सी० सी०सी० टी० वी० लगवाने एवम् मन्दिर के भूतल भाग के चारो तरफ से लोहे के मजबूत ग्री ल से कवर करा ने की जवाब देही श्री सुशील कुमार सिन्हा, सचिव पर तय की गई । फलस्वरूप तय जिम्मेवारी के तहत श्री संदीप चन्द्रा, उपाध्यक्ष की मार्ग दर्शन में श्री सुशील कुमार सिन्हा, सचिव के अथक प्रयास से कुछ ही दिनों में कार्य सम्पन्न करा लिया गया ।
  • अक्तूबर 2016 में श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा, अध्यक्ष जी के द्वारा सुशील कुमार सिन्हा, प्रशासनिक सचिव को सोसाईटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1860 के अंतर्गत श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर प्रबन्धक समिति के निबन्धित संविधान के लम्बित संशोधन निष्पादन की जबाबदेही के उपरान्त निबन्धन विभाग के उच्चस्तरीय गठित टीम द्वारा जाँच की प्रक्रिया के उपरांत विभिन्न बाधाओं को दूर करते हुए अपने अथक प्रयास से जून 2017 में संशोधित संविधान की स्वीकृति प्रदान करा ली गई ।
  • सन् 1973 में गंगा पुल निर्माण में विस्थापितों के पुर्नवास योजना के लिए गंगा पुल परियोजना, पथ निर्माण विभाग, बिहार सरकार द्वारा श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर की जमीन को बिना भू-अर्जन के सड़क का निर्माण करा दिया गया तथा उसके कुछ भाग को विस्थापितों को निबन्धित कर दिया गया था। जुलाई 2017 में श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा, अध्यक्ष जी के द्वारा सुशील कुमार सिन्हा, प्रशासनिक सचिव को उस समय (यानि लगभग 45 वर्षों) से लम्बित विवाद को निपटाने की दी गई जबाबदेही के उपरान्त विभिन्न बाधाओं को दूर करते हुए अपने अथक प्रयास से सेतु प्रबंधन उपभाग, पथ निर्माण विभाग, बिहार सरकार के आदेश संख्या- जी0बी0पी0 22/ स्था० केस 111/2001-132 दिनांक 10.04.2018 के तहत भूमि का हस्तानान्तरण कर उपमुख्य सेतु विशेषज्ञ (कार्यपालक अभियन्ता) द्वारा निबन्धित किया गया तथा निबन्धन के उपरान्त पटना नगर निगम के अधिनस्थ निबन्धित जमीन का म्युटेशन तथा बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में लगाान के र्निधारण का कार्य सुशील कुमार सिन्हा, प्रशासनिक सचिव के द्वारा संपन्न करा लिया गया ।
  • श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा, अध्यक्ष जी के द्वारा श्री सुदामा प्रसाद सिन्हा, प्रधान सचिव को तय की गई जबाबदेही के तहत पूर्व दिशा में मुख्य द्वार को ग्रेनाइट के साथ निर्माण एवं मंदिर के गुम्बज कर भी निर्माण का कार्य सम्पन्न करा लिया गया है ।
  • सन् 2019 के प्रारम्भिक महीने में श्री नितीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार सरकार ने अध्यक्ष जी, श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा से श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर के दर्शन की इच्छा व्यक्त की तो उन्हें मंदिर के उपरी भाग से सम्मोहक दृश्य का अवलोकन कराने हेतु, तथा मंदिर से सटे उत्तरी गंगा तटीय अनुपयोगी भुखण्ड की श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर प्रबन्धक समिति के लिए उपयोगिता दर्शाने का मौका इससे बेहतर क्या हो सकता था, अतः उनके समक्ष जमीन के पट्टे के लिए अनुरोध किया गया था । मुख्यमंत्री जी को उपर जाने में कोई कठिनाई न हो इसी मद्देनज़र अध्यक्ष जी, श्री रवीन्द्र किशोर सिन्हा के निर्देशानुसर श्री सुदामा प्रसाद सिन्हा, प्रधान सचिव की देख रेख में लगभग पचीस लाख की लागत लगाकर मंदिर में लिफ्ट लगाया गया।