13 नवम्बर को भगवान् चित्रगुप्त के पुनरवतरण की स्मृति में ” चित्रांश एकता दिवस ” “चित्रांश महोत्सव” की तरह मना। भारतीय नृत्य कला मंदिर पटना के मुक्ताकाश में आयोजित महोत्सव में कायस्थ समाज के लगभग बीस हज़ार भाई बहन अपने परिवार के साथ पहुँचे और सात घंटों तक सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं सम्मान समारोह में जमे रहे। इसके पूर्व गाजे बाजे के साथ पटना साहेब स्थित श्री चित्रगुप्त आदि मंदिर से निकली शोभा यात्रा के बाद मुक्ताकाश मंच पर ही सामने आरुण हो गयी भगवान् चित्रगुप्त जी की चल प्रतिमा. प्रतिमा की उपस्थिति में जिलों से आए कायस्थ परिवारों और विभिन्न कायस्थ महासभाओं और अन्य संगठनों से आये देश भर के कायस्थ प्रतिनिधियों का जो यह महासंगम या महामिलन हुआ – उसे सभी ने अभूतपूर्व कहा। कायस्थ नवजागरण आन्दोलन अब सही अर्थों में परिपक्वता की ओर बढ़ता दिख रहा है।
पत्रकारों एवं राजनेताओं ने इस समारोह और पटना साहेब की गलियों से निकली श्री चित्रगुप्त भगवान् की चल मूर्ति की भव्य शोभायात्रा को शक्ति प्रदर्शन माना या इसके क्या राजनैतिक निहितार्थ निकाले – इससे हमें कोई लेना–देना नहीं, हम तो इतना ही जानते हैं की 1574 में राजा टोडरमल द्वारा काले-कसौटी की भगवान् चित्रगुप्त की प्रतिमा की स्थापना और 50 के दशक में इनकी प्रतिमा के चोरी चले जाने के बाद अचानक चित्रसेन गाँव के खेत में जमीन के भीतर से भगवान् श्री चित्रगुप्त का पुनरवतरण एक चमत्कारिक एवं अलौकिक घटना थी। मुखमंत्री श्री नितीश कुमार के मन में रूचि का जगना और उनके सहयोग से आदि मंदिर में भगवान् चित्रगुप्त की वापस पुनुर्स्थापन भी चमत्कारिक घटना नहीं है क्या? नितीश कुमार जी ने तो यह भी कहा की उनके ही कार्यकाल में श्री चित्रगुप्त भगवान् का पुनरवतरण उनके लिए भी एक आशीर्वाद के समान है।
भगवान् श्री चित्रगुप्त जी के पुनरवतरण के बाद इस तरह से शोभा यात्रा और परिवारों के महासंगम ने अब महोत्सव का रूप ले लिया है। इसी वजह से इस एकता दिवस को ‘चित्रगुप्त महोत्सव’ के नाम से अब हर वर्ष मनाया जायेगा।