अनंत चतुर्दशी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है, और लोग अनंत धागा बाँधकर व्रत रखते हैं। यह पर्व विशेष रूप से गणेशोत्सव के समापन के रूप में भी मनाया जाता है, जब गणपति विसर्जन होता है।
अनंत चतुर्दशी का धार्मिक महत्त्व
अनंत चतुर्दशी का महत्त्व भगवान विष्णु के अनंत रूप से जुड़ा हुआ है। ‘अनंत’ का अर्थ होता है ‘जिसका कोई अंत न हो’, अर्थात् भगवान विष्णु। यह माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। विष्णु भक्तों के लिए यह पर्व विशेष स्थान रखता है, क्योंकि इस दिन व्रती लोग अनंत सूत्र धारण करते हैं और भगवान विष्णु से अपनी रक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
इस दिन का दूसरा प्रमुख महत्त्व गणेशोत्सव के अंत से है। महाराष्ट्र और अन्य पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में यह दिन गणपति विसर्जन के रूप में भी मनाया जाता है। गणपति बप्पा की मूर्तियों को धूमधाम से विसर्जित किया जाता है और उनसे अगले वर्ष जल्द वापस आने की प्रार्थना की जाती है।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
अनंत चतुर्दशी व्रत से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है जो राजा सुतन और उनकी पत्नी शीला से संबंधित है। कहा जाता है कि राजा सुतन की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। तब एक ऋषि ने उन्हें भगवान विष्णु की अनंत रूप में पूजा करने और अनंत धागा बाँधने का सुझाव दिया। राजा सुतन ने इस व्रत को पूरी श्रद्धा से किया और जल्द ही उनकी सभी समस्याओं का अंत हो गया। तब से इस व्रत को जीवन में सुख-समृद्धि लाने के लिए किया जाता है।
अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि
- व्रत की तैयारी: अनंत चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर साफ वस्त्र पहनें और पूजा के लिए अपने घर में एक साफ स्थान पर पूजा की व्यवस्था करें।
- पूजन सामग्री: पूजा के लिए भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र, अनंत सूत्र (धागा), फूल, धूप, दीप, चंदन, नारियल, पान, सुपारी, मिठाई और तिलक के लिए हल्दी-कुमकुम की आवश्यकता होती है।
- व्रत और अनंत सूत्र: पूजा के समय अनंत सूत्र (धागा) पर 14 गांठें बाँधी जाती हैं। पुरुष इसे दाहिनी कलाई पर और महिलाएँ बाएँ हाथ की कलाई पर बाँधती हैं। यह धागा भगवान विष्णु के अनंत रूप का प्रतीक है, जो जीवन में अनंत सुख और समृद्धि प्रदान करता है।
- कथा का पाठ: पूजा के बाद अनंत चतुर्दशी व्रत कथा का श्रवण करना आवश्यक है, जिससे इस व्रत के महत्त्व और फल की जानकारी प्राप्त होती है।
- आशीर्वाद और प्रसाद: पूजा के अंत में भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है।
गणेश विसर्जन का महत्त्व
अनंत चतुर्दशी के दिन गणेशोत्सव का समापन गणपति विसर्जन से होता है। यह दिन गणपति बप्पा को विदाई देने का होता है, जिसमें उन्हें जल में विसर्जित किया जाता है। लोग बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ गणपति को विदा करते हैं और उनसे अगले वर्ष पुनः आने की प्रार्थना करते हैं। महाराष्ट्र में इस दिन का खास महत्त्व है, जहाँ गणेश विसर्जन भव्य शोभायात्राओं के साथ किया जाता है।
निष्कर्ष अनंत चतुर्दशी का पर्व भगवान विष्णु और गणेश जी दोनों की आराधना का प्रतीक है। यह दिन भक्तों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे जीवन में समृद्धि और शांति प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। अनंत चतुर्दशी का व्रत न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि यह हमें जीवन की अनंत संभावनाओं और अवसरों की ओर प्रेरित करता है।
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