शिव और सावन-सोमवार को एक-दूसरे का पूरक माना जाता है। समुद्र मंथन में पहले जहर निकला और फिर अमृत। विष इतना प्रबल था कि उसके ताप को सहन करने में विषधर शेषनाग भी समर्थ नहीं हो सके। जहर के प्रभाव से सभी भयभीत हो उठे, तब भगवान शंकर को देवों और दैत्यों ने याद किया। फिर शिवजी ने विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और नीलकंठ कहलाएं। विष के प्रभाव कम करने के लिए देवताओं ने शिव जी पर घड़ों से पानी डालना शुरू किया। यह एक तरह से उनका प्रथम जलाभिषेक था। जिस महीने में यह सब हुआ वह महीना था सावन और जिस दिन उन्हें विष ताप से निजात मिली, वह दिन था सोमवार इसलिए भगवान शिव को सावन और सोमवार दोनों ही प्रिय हैं। माता पार्वती से भगवान शिव की मुलाकात भी सावन में हुई थी। मां पार्वती के तन का कालापन से गोरी होने का दिन भी सावन का सोमवार था जिससे भगवान शिव को दोहरी ख़ुशी मिली इसीलिए श्रावण में सोमवार का दिन को विशेष माना है।
17
Jun
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